Thursday, August 22, 2019

बेबजह

कोशिश करता हूँ मुस्कराने की

रुन्दन के आलाप को छिपाने की

दगा पर दे जाती हैं लकीरें ललाटों की

सूनी पथराई आँखों का मंजर

कह रहा देख ताबीर हाथों की

ले कटारी उकेर दूँ

किस्मत की इन अछूती लकीरों को भी

भूल गया था सँवारने खुदा जिन्हें

सपनों की अनमोल जल तरंगों सी

प्यासी रह गयी थी अन्तरआत्मा

रिस रहा लहू अंतर्द्वंद के प्रहरों से भी

वक़्त के पहले चहरे पर पड़ी सलवटें

चीख चीख सुना रही कहानियों इन लक़ीरों की

कर समझौता उदासी के इन रंगों से

उम्र अब एक नयी लिखूँ

बेबजह मुस्कराने की

बेबजह मुस्कराने की

Monday, August 19, 2019

रूठी जुबानी

अधूरी मोहब्बत का अधूरा फ़साना हो तुम

या अधूरे अल्फाजों की किताब हो तुम

या फिर अध लिखे खतों की ताबीर हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे लबों की खोई मुस्कान हो तुम

जुगनू सी चमकती, तारों से टिमटिमाती रातों में

चाँद की फरमाईस हो तुम

या तेरी धुन पर थिरकती कायनात की कोई कहानी हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे एक तरफ़ा इश्क़ की निशानी हो तुम

दरख्तों पर उकेरी कोई अधूरी चित्रकारी हो तुम

या मंदिर मस्जिद में लिखी कोई इबादत हो तुम

जो कोई भी तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम  

Thursday, August 15, 2019

निंद्रा

रुला रुला आँसुओ को मैं सुला आया

बोझिल पलकों को तम के साहिल में डूबो आया

खुदगर्ज़ हो चले थे जो जज्बात

जनाजे की बारात में दफ़न उन्हें कर आया

अरमानो के वो मुक़ाम टिसन जिसकी चुभ रही

लहू की बारिस में उन्हें भी भिगों आया 

कर रुसवाई यादों के भँवर से

निंद्रा की आगोश में खुद को लुटा आया

पर अन्तर्मन की करुण रूँधो से

एक बारी साया भी घबरा आया

फिर भी

रुला रुला आँसुओ को मैं सुला आया

आँसुओ को मैं सुला आया 

सजा

इल्म इसका नहीं

उनकी गुनाहों का मैं सजायाफ्ता हो गया

बस

तारीख़ की तहरीर में इश्क़ बाग़ी हो गया

अमल किया जिस तामील को खुदा मान

निगाहों के क़ातिल का वो तो आफ़ताब निकला

खुली जुल्फों की कैद में

कतरा कतरा लहू कलमा इश्क़ लिखता चला गया

बड़ी नफ़ासत नजाकत से सँवारा था जिसे

क़त्ल ए गुनाहों में वो दिल भी शरीक हो गया

कब ऐ मासूम नूर ए अंदाज़

उनकी क़ातिल निगाहों का शिकार हो गया

खुदा को भी इसका अहसास हो ना पाया

और बिन गुनाह किये ही मैं

उनकी हसीन गुनाहों का सजायाफ्ता हो गया

सजायाफ्ता हो गया   

Sunday, August 4, 2019

तलाश

किरदार अपना तलाश रहा हूँ

जमाने की ठोकरों में बचपन अपना तलाश रहा हूँ

धधक रही ज्वाला जो इस दिल में

पूर्णाहुति में उसकी यादें अपनी तलाश रहा हूँ

बरगद की छावं में कागज़ की नाव में

ठिकाने ठहाकों के तलाश रहा हूँ

उड़ा ले गए वक़्त के थपेड़े जिन लम्हों को

आँखों में औरों की सपने वो तलाश रहा हूँ

आवारा बादलों में चाँदनी के नूर में

अक्स चाँद का तलाश रहा हूँ

कुछ और नहीं

उम्र के इस पड़ाव पर

खुदा बन

खुद में खुद को तलाश रहा हूँ

खुद में खुद को तलाश रहा हूँ