Thursday, March 26, 2020

पूर्णविराम

ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला

कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज

अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने

कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय

प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि

विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव

वरदान थी जो प्रकृति अब तलक

दफ़न कर नए उत्थान की बात

अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय

अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को

लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को

लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय

रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के

बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज

नाग बन डस गये मानव को

उसके ही विनाशकारी हथियार आय

लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर

कायनात के इन पूर्णविरामों से आज

कायनात के इन पूर्णविरामों से आज  

Friday, March 20, 2020

बेबस नारी

सहम जाती हूँ परछाई से भी अपनी

नुमाईस लगा रखी हैं अंधकार ने इतनी

शुष्क लबों को डरा रही

आहट पद्चापों की अपनी

कितनी व्यतिथ यह जिंदगानी हैं

हर गली चौराहों नुक्कड़ पे

शाम ढले यही कहानी हैं

वहशी दरिंदों की नजरों ने पहनी

हैवानियत हवस की लाली हैं

चीरती कोई चीख वीरान सन्नाटे को

हृदयगति एक पल को ठहरा जाती हैं

कितनी बेबस बना दिया कुनबे ने

अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं 

अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं