Sunday, July 28, 2013

वर्णन

किन लफ्जों में उस खूबसूरती का बखान करूँ

तारों भरी रात थी

सपनों  की बारात थी

उर्वशी सी कोई अप्सरा

आसमां से झाँक रही थी

कर दीदार चाँद के

मन ही मन मंद मंद मुस्का रही थी

नजरे  टकटकी लागये

इस पल को निहार रहे थे

समां बंधा था ऐसा

कब ढल गयी वो सुहानी रात

अहसास इसका आँखों के आस पास भी ना थी 

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