Monday, August 26, 2013

अपनी दुनिया

नम आँखों से तेरी विदाई देखते रहे

ख़ामोशी से तक़दीर की रुसवाई सहते रहे

हौसला इतना जुटा ना पाए

चाहत की अपनी खातिर अपनों से लड़ पाए

डोली आनी थी जो मेरे अँगना

विदा हो रही थी किसी ओर के अँगना

कैसे रचेगी मेहंदी उसके हाथों सजना

कैसे अब मैं जी पाऊंगा उसके बिना

सपनों में भी जिसे भुला ना पाऊंगा

सिर्फ उसकी यादों के सहारे कैसे मैं जिन्दा रह पाऊंगा

ख़त्म हो गयी अब सारी दुनिया

अपने ही हाथों उजाड़ दी मैंने अपनी दुनिया 

Saturday, August 24, 2013

खुशनुमा अहसास

कब तलक परछाइयों से डरते रहेंगे

सायों से लड़ते रहेंगे

आरजू अब बस इतनी सी है

पहले इसके की हवायें रुख मोड़ ले

पवन पुरबाई अठखेलियाँ करना छोड़ दे

दूरियाँ ये हम दोनों के दरमियाँ सिमट आय

एतराज मिलन का धडकनों को भी ना हो

मुलाक़ात जब दिल से दिल की हो

इस प्यार भरी सौगात का

हर पल खुशनुमा अहसास हो




बेखबर

 औ बेखबर तुम्हें खबर भी ना हुई

तुम दर्पण निहारती रही गयी

ओर हम तेरी आँखों से काजल चुरा ले गए

आईना इसके पहले टूट जाए

तुम दिल को अपने जरा संभाल लो

नादानी में कहीं होश ना गँवा बैठो

दर्पण से इसलिए अब तुम किनारा कर लो

निहारना हो अब जब कभी अपने आप को

हमारी आँखों में झाँक लिया करो

अक्स तुम्हे अपना नजर आ जायेगा

तस्वीर का दूसरा पहलू भी समझ आ जायेगा

तस्वीर का दूसरा पहलू भी समझ आ जायेगा

Monday, August 12, 2013

फ़रियाद

गुमनाम तुम होती तो

खुदा से मन्नते ना मांगता

हर दुआओं में

तेरी सलामती की फ़रियाद ना मांगता 

कबूल

कबूल कर ली हमने उस सौगात को

पैगाम छिपा था जिसमें

दुआयें नजर यार को

ढह गयी दीवारें

सिमट गए फासले

कशिश के इस पैगाम में

बदल गयी दुनिया

इश्क ए जूनून की राह में

मिल गया जैसे कोई  खुदा

कशिश की इस छावं में

कबूल कर ली हमने उस सौगात को

Friday, August 2, 2013

बेपनाह मोहब्बत

आरजू मैंने भी ये की थी

चाहत मुझको भी मिलेगी

नसीब इतना भी बुरा नहीं

की दुओं की फ़रियाद सुनाई नहीं देगी

चौखट से रब की कोई खाली लौटा नहीं

फिर क्यूँ मेरी तक़दीर में चाहत नहीं

कोई शख्स तो आखिर ऐसा होगा

जिसको भी इस नाचीज़ से बेपनाह मोहब्बत होगी 

Thursday, August 1, 2013

खौफ़

जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है

हर वक़्त खौफ़ के साये में सिमटी रहती है

दर्द जमाने का रास इसे आता नहीं

डर लगता है इसे किससे समझ आता नहीं

भागती फिरती अपने आप से

मिल गयी कोई रूह जैसे राह में

निहारती जब अपने को दर्पण में

देख अक्स सिरहन सी यह जाती है

सूनी आँखों से ना जाने क्या तलाशती है
 
 जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है