Wednesday, October 1, 2014

रिश्तों से डर

रिश्तों से डर लगता है अब

किसी को अपना कहने से भय लगता है अब

रिश्तों को भूल अपने ही

पराये बन जाए सपनें जैसे जब

कैसे नाता उनसे जोड़े तब

कच्चे धागे की इस डोर को

जोड़े फिर कैसे हम

रिश्तों से डर लगता है अब

बार बार के तानों से ही

रिश्तों को जो यह नया आयाम मिला

मुकाम रिश्तों का फिर एक नया बना

रिश्तों का इसीलिए यह अंजाम हुआ

किसी को अपना कहने का अब दुःसाहस ना हुआ

और रिश्तों से भय लगने लगा है अब




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