Wednesday, July 20, 2016

लम्हा

जिन्दगी तू पलट के देखती क्यों नहीं

गुजरे लम्हों को समेटती क्यों नहीं

माना यादें वो रुलाती हैं

पर कोई लम्हा ऐसा भी था

जो सिर्फ और सिर्फ मेरा था

सिमट जाये ए यादों के पन्नों में

पहले इसके

ए जिंदगी उस पल के झरोखें से

एक बार फिर बचपन का अहसास करादे

जो लम्हा मेरा था

एक बार फिर उससे मिला दे

एक बार फिर उससे मिला दे

Monday, July 4, 2016

सफरनामा

सफ़र के इस पड़ाव में

खड़ा हूँ मुक़ाम की जिस दहलीज़ पर

राह यह आसान ना थी

मंजिल फ़िर भी मगर पास ना थी

टूटे अरमानों में साँस अभी बाकी थी

क्योंकि सफरनामे की इस गाथा में

दिलचस्प वृतांत अभी आनी बाकी थी

शायद इसीलिए

उम्मीदों की किरणों में आस अभी बाकी थी

बिखरें जज्बातों की इस कहानी में

अठखेलियाँ करते बचपन की निशानी अभी बाकी थी

वक़्त के गर्त में समा ना जाये ए अधूरी कहानी

इसलिए ताबीर जिंदगानी की अभी बाकी थी

ताबीर जिंदगानी की अभी बाकी थी