Monday, July 4, 2016

सफरनामा

सफ़र के इस पड़ाव में

खड़ा हूँ मुक़ाम की जिस दहलीज़ पर

राह यह आसान ना थी

मंजिल फ़िर भी मगर पास ना थी

टूटे अरमानों में साँस अभी बाकी थी

क्योंकि सफरनामे की इस गाथा में

दिलचस्प वृतांत अभी आनी बाकी थी

शायद इसीलिए

उम्मीदों की किरणों में आस अभी बाकी थी

बिखरें जज्बातों की इस कहानी में

अठखेलियाँ करते बचपन की निशानी अभी बाकी थी

वक़्त के गर्त में समा ना जाये ए अधूरी कहानी

इसलिए ताबीर जिंदगानी की अभी बाकी थी

ताबीर जिंदगानी की अभी बाकी थी
 

No comments:

Post a Comment