Thursday, April 12, 2018

गुज़ारिश

राज सारे जो आज खुल गए

कल कैसे फ़िर उन्हें याद करेंगे

बिन यादों की पनाह

कैसे फ़िर चाँद का दीदार करेंगे

तन्हाईओं की ग़ज़ल

कहीं महफ़िल में गुम ना हो जाये

बात दिलों के दरमियाँ की

कहीं सरेआम ना हो जाये

गुज़ारिश ज़माने से इसलिए इतनी सी हैं

कुछ राज को राज ही रहने दो

जब तलक जुड़ी हैं साँसे धड़कनों से

यादों के इन हसीन तिल्सिम में

दिल को खामोश सफ़र करने दो

दिल को सफ़र करने दो

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-04-2017) को "डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती" (चर्चा अंक-2940) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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