Tuesday, July 3, 2018

इत्र सी

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले

कुछ सुहाने पल चुरा

यादों का एक हसीन घरोंदा बना ले

किताबों के उन सुखें फूलों से

इसकी दरों दीवार सजा दे

इन्तजार के उन पलों में

मिलन की एक नयी आस जगा दे

निहारते हुए इस खाब्ब को 

आ यादों की ऐसी ताबीर बना ले

हर रूत महके ऐसी कायनात बना ले 

अनछुए पहलुओं  को

नींद से जागने की खुमारी बना ले

छू जाए दिल को जो बार बार

उन गुजरें यादों की

इत्र सी महकती कशिश बना ले

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले

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