Saturday, July 7, 2018

जुस्तजूं

जुस्तजूं इश्क़ की ऐसी लगी

फ़रियाद हवाओं संग बह चली

मुशायरा, मशवरा ऐसा अंदाज ए वयां बन आयी

हर जज्बातों मेँ  शायरी बन आयी

मिज़ाजे इश्क़ शबाब्ब ऐसा चढ़ा

हर क़तरा क़तरा क़ासिद बन आयी

दीवानगी के फ़ितूर का रंग ऐसा रंगा

फ़लक तलक जिंदगी फ़ना हो आयी

मुस्तक़बिल मुरीद ऐसी बन छाई

दिलों के अंजुमन में,

रसक ए कमर इज़हार कर आयी

मिल लफ्जों से नज़्म ऐसी बना डाली

हर दरख़्तों पर मानों फ़िजा चली आयी

बा दस्तूर क़ुरबत ऐसी मिली

सारा जहाँ भूल,

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-07-2018) को "देखना इस अंजुमन को" (चर्चा अंक-3027) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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