ए जिंदगी तेरी किताब में
हम गुमनाम हो गए
नफरतों के बाजार में
मोहब्बत के क़र्ज़दार हो गए
साँसों की रफ़्तार ने निराशा में
ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
टूटती नब्ज़ घबरा तुझसे
लफ्जों से महरूम हो गयी
कहने लगी हैं रुख हवायेँ सभी
आ लुका छिपी के पेंच खोल दे
जुड़ जाए मेरी डोर तेरी पतंग से
पुरानी बातों की गाँठें खोल दे
मुझ जैसे तमाशबीन में
फिर मोहब्बत के रंग भरने
कोई गुमनाम शायर ही सही
ए जिंदगी तेरे कुछ पन्ने
तुझसे ही उधार खरीद
तेरी किताब के पन्नों में
फिर से हमें आबाद कर दे
हम गुमनाम हो गए
नफरतों के बाजार में
मोहब्बत के क़र्ज़दार हो गए
साँसों की रफ़्तार ने निराशा में
ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
टूटती नब्ज़ घबरा तुझसे
लफ्जों से महरूम हो गयी
कहने लगी हैं रुख हवायेँ सभी
आ लुका छिपी के पेंच खोल दे
जुड़ जाए मेरी डोर तेरी पतंग से
पुरानी बातों की गाँठें खोल दे
मुझ जैसे तमाशबीन में
फिर मोहब्बत के रंग भरने
कोई गुमनाम शायर ही सही
ए जिंदगी तेरे कुछ पन्ने
तुझसे ही उधार खरीद
तेरी किताब के पन्नों में
फिर से हमें आबाद कर दे
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3365 दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआभार
मनोज क्याल
बहुत खूब लिखा है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
This comment has been removed by the author.
Deleteआदरणीय नासवा जी
Deleteप्रोत्साहन के लिए तहे दिल से आपका आभारी
आभार
मनोज क्याल
अति सुंदर लेख
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteरचना पसंद करने के लिए धन्यवाद्
आभार
मनोज क्याल
ए जिंदगी तेरे कुछ पन्ने
ReplyDeleteतुझसे ही उधार खरीद
तेरी किताब के पन्नों में
फिर से हमें आबाद कर दे
बहुत उम्दा हृदय स्पर्शी रचना ।
आदरणीय कुसुम दीदी
ReplyDeleteहौसला अफजाई के दिल से शुक्रिया
आभार
मनोज क्याल