Monday, August 19, 2019

रूठी जुबानी

अधूरी मोहब्बत का अधूरा फ़साना हो तुम

या अधूरे अल्फाजों की किताब हो तुम

या फिर अध लिखे खतों की ताबीर हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे लबों की खोई मुस्कान हो तुम

जुगनू सी चमकती, तारों से टिमटिमाती रातों में

चाँद की फरमाईस हो तुम

या तेरी धुन पर थिरकती कायनात की कोई कहानी हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे एक तरफ़ा इश्क़ की निशानी हो तुम

दरख्तों पर उकेरी कोई अधूरी चित्रकारी हो तुम

या मंदिर मस्जिद में लिखी कोई इबादत हो तुम

जो कोई भी तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम  

6 comments:

  1. आदरणीय शास्त्री जी

    मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार

    सादर
    मनोज क्याल

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(18-7-21) को "प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. दरख्तों पर उकेरी कोई अधूरी चित्रकारी हो तुम

    या मंदिर मस्जिद में लिखी कोई इबादत हो तुम

    जो कोई भी तुम

    पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर।

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  4. बहुत सुंदर सृजन

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