Thursday, December 12, 2019

पत्ते

सिलसिला बातों का थम गया

दूर तुम क्या गए

दौर मुलाकातों का रुक गया

झरोखें के उस आट  से

चाँद के उस दीदार को

दिल ए सकून की तलाश में

खो गया तेरी गलियों की राहों में

तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

छलकते दर्द की परछाई को

छिपा अरमानों की बेकरारी को

जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को

हाथ छूटा मंजर टूटा

दूरियाँ चली आयी दोनों के पास 

मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए 

पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ 

7 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय स्वेता जी

      मेरी रचना लिंक करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

      Delete
  2. हाँ अब तो रिश्ते भी सौसम की तरह बदल जाते हैं -क्या कहा जाय किसी को‍

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय प्रतिभा जी

      मेरी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

      Delete
  3. तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

    छलकते दर्द की परछाई को

    छिपा अरमानों की बेकरारी को

    जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को
    वाह!!!
    क्या बात...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय सुधा जी
      मेरी रचना पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

      Delete