Thursday, December 26, 2019

सत्य की पहचान

ख़ोज रहा हूँ असत्य में सत्य की पहचान को

इस आबोहवा में लौ चिंगारी की आगाज़ को

कमसिन उम्र परिंदों सी छटपटाहट

हर लफ़्ज़ों से अँगार हैं बरसे

गहरे कोहरे घनघोर अँधेरे

तमाशबीन खड़े हैं समय घेरने

उन्माद हिंसक ज्वलंत प्रकरण

नए रूप में उभरा हैं रावण

होलिका दहन ताण्डव रूप धरे नवयौवन

रक्त होली बीच गुम हो गया बचपन

चल रहा असत्य हर घर हर गली गली

आराध्य बन पूज रही घृतराष्ट्र की टोली

करने इस कुरुक्षेत्र पटककथा का पटाक्षेप

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़  

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़     

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