Saturday, December 5, 2020

फ़िदा

तू इस शहर की सहर थी I
मैं उस शहर की शाम II

देखा तुझे यूँ अचानक जब अपने दालान I
यूँ लगा जैसे जेहन उतर आया कोई चाँद II

पूछ रहे तुम मुझ से मेरा ही पता I
दिल को भा गया मुसाफ़िर तेरा यह अंदाज़ II

पैगाम लबों पे उनके अब तलक ऐसे ख़ामोश था I
किसी खाब्ब को जैसे किसी चाँदनी रात का इंतज़ार था II

भूल गया पता अपना एक पल को I
ग़ुम हो गया इशारों की परछाई को II

कुछ पल वो ठहरे कुछ कहते कहते अटके I
फिर थमा दामन हाथों में हौले से चल दिए II

बेजान सा खड़ा मैं कुछ समझ ना पाया I
वो जोड़ गयी दिलों के तार कैसे समझ ना पाया II

बस उसकी मुस्कराहट पर फ़िदा हो आया II
बस उसकी मुस्कराहट पर फ़िदा हो आया II

18 comments:

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    1. आदरणीय सुशील जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  3. तू इस शहर की सहर थी I
    मैं उस शहर की शाम II

    वाह....👌

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  4. आदरणीय सिन्हा जी
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद
    आभार

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  5. Replies
    1. आदरणीय शिवम् जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  6. आदरणीया ज्योती दीदी जी
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद
    आभार

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  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 06 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. आदरणीया दिव्या जी
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
    आभार

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  9. तू इस शहर की सहर थी I
    मैं उस शहर की शाम II
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  10. Replies
    1. आदरणीय शांतनु जी
      शुक्रिया
      आभार

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    1. आदरणीय आलोक जी
      मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
      आभार

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  12. वाह मनोज जी ! बहुत ख़ूब !

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