अरमानों को लफ्ज़ दू तो
दिल रोता है
पर मुस्कराके नये सपनें फिर बुनता है
इल्म नहीं मुझे इसके रोने का
इसलिये हर लफ्जों में जज्बात पिरोता हुँ
अरमानों की डोली
दुःखों की सेज पे भी हसीन बने
इसलिये पाने बचपन को फिर से
पल पल मचलता हुँ
हर रंगों की एक नयी कहानी हो
हर लफ्जों की एक नयी जुबानी हो
इसी कशमश में
सपनों से दूर चला जाता हुँ
पर खाब्ब की कशिश से
नाता तोड़ नहीं पाता हुँ
नाता तोड़ नहीं पाता हुँ
दिल रोता है
पर मुस्कराके नये सपनें फिर बुनता है
इल्म नहीं मुझे इसके रोने का
इसलिये हर लफ्जों में जज्बात पिरोता हुँ
अरमानों की डोली
दुःखों की सेज पे भी हसीन बने
इसलिये पाने बचपन को फिर से
पल पल मचलता हुँ
हर रंगों की एक नयी कहानी हो
हर लफ्जों की एक नयी जुबानी हो
इसी कशमश में
सपनों से दूर चला जाता हुँ
पर खाब्ब की कशिश से
नाता तोड़ नहीं पाता हुँ
नाता तोड़ नहीं पाता हुँ
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2015) को "रह गई मन की मन मे" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks sir
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