उलझी उलझी थी मोहब्बत मेरी उसके दिल की गली गली l
संगेमरमर सी ताज महल बन गयी वो यादों की गली गली ll
खुशनुमा हो जाते थे तरन्नुम के वो कुछ खास से पल l
छत पर जब नजर आ आती थी उसकी एक झलक ll
कसीदें उसके तारूफ में भेजा करते जब आसमाँ साथ में l
मेघों की लड़ियों भी सज जाती उसकी कर्णफूलें शान में ll
कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
हथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच ll
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l
चाँद जब जब उतर आता था मेरे झरोखे दालान भी ll
बड़ा मीठा सा रूमानी था कल्पनाशील का वो आशिकी मिजाज़ भी l
निभाने दस्तूर ख्यालों से निकल वो चले आते थे ख़्वाबों पास भी ll
अवदान उनकी उस मुस्कान का ही था मेरी उड़ानों के बीच l
जिक्र सिर्फ जिनकी आँखों का ही था मेरी किताबों के बीच ll
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4407 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
आदरणीय दिलबाग भाई साहब
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया l
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
ReplyDeleteकल्पना की ऊँची उड़ान बहुत प्रभावी है प्रिय मनोज जी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
आदरणीया रेणु दीदी जी
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
ReplyDeleteहथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच.... वाह!बहुत सुंदर अनुज 👌
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
ReplyDeleteवाह!!!!
क्या बात..
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l