Friday, December 13, 2019

ख्यालों की माला

गुँथ रहा हूँ ख्यालों की माला

कही अनकही अहसासों की गाथा

ऊपर गागर नीचे सागर

भँवर में अटकी सपनों की डागर

संसय भ्रमित ख़ोज रहा मन

मरुधर बीच अमृत नागर

आत्मसात करलूँ हर तारण

बैठू पूनम की रात मधुशाला जाकर

तृप्त हो जाऊ इस बैतरणी को पाकर

रस वो नहीं रुद्राक्ष तुलसी पिरोकर

बने श्रृंगार गजरे तेरे ख्याल पिरोकर

खोल पिटारा बैठा हूँ

निकल आये कही तरुवर में सागर

चहक उठे यादों की बगियाँ

भर आये नए सपनों के गागर

नए सपनों के गागर

Thursday, December 12, 2019

पत्ते

सिलसिला बातों का थम गया

दूर तुम क्या गए

दौर मुलाकातों का रुक गया

झरोखें के उस आट  से

चाँद के उस दीदार को

दिल ए सकून की तलाश में

खो गया तेरी गलियों की राहों में

तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

छलकते दर्द की परछाई को

छिपा अरमानों की बेकरारी को

जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को

हाथ छूटा मंजर टूटा

दूरियाँ चली आयी दोनों के पास 

मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए 

पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ 

Tuesday, November 5, 2019

आँखों का आलिंगन

अनकहे अल्फाजों का पैगाम हैं

जुल्फ़ों की लटों में गुजरे जो

हर वो शाम पाक ए जवां हैं

कुछ रूमानी सा अंदाज़ हैं

निखर आये रंग हिना भी

मौशीकी में डूबी शबनमी रात हैं

एक पल को ठहर जाये यह पल यहाँ

उड़ा ले जाये आँचल पवन वेग में

हिरणी सी मदमाती चाल हैं

छलके रोम रोम से प्यार खुदा बनके

संगेमरमर में तराशी ताज हैं

छोटा सा हसीन यह खाब्ब हैं

आँखों के आलिंगन में सजी रहे

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं 

Friday, October 11, 2019

गुफ्तगूँ

साँसों की गुफ्तगूँ में

गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी

खुले केशवों की लटों में

अरमानों की ताबीर खो गयी

देख चाँद के शबाब को

आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी

सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी

आँचल के आगोश में सिमटी

तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी

निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से

चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी

हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

Saturday, September 14, 2019

यादों के नाम

लिख रहा हूँ नज़्म तेरी यादों के शाम

महकी महकी सोंधी साँसों के नाम 

सागर की कश्ती बाँहों के पास 

उड़ रहा आँचल निकल रहा आफताब 

शरमा रही लालिमा झुक रहा आसमां 

बंद पलकों के शबनमी दामन ने 

थाम लिया लबों के अनकहे लफ्जों का साथ 

निखर रही हिना छुप रहा महताब 

खोया रहू ता जीवन तेरे केशवों की छाँव 

बीते हर सुरमई शाम तेरी एक नयी नज्म के नाम 

मेहरबां उतार तू अब नक़ाब का लिहाज 

समा जा मेरी रूह के आगोश में 

बन मेरी धड़कनों का अहसास 

मैं लिखता रहूँ नज्म बस तेरी यादों के नाम