Tuesday, January 29, 2013

कारवाँ

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

गुब्बार धूल का उड़ाता चला गया

किसीको रंजो गम के सैलाब में डुबाता चला गया

किसीको खुशियों के रंग डुबाता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

निशाँ क़दमों के पीछे छोड़ता चला गया

इतिहास बन गुजरे कल की दास्ताँ सुनाता चला गया

एक नयी दिशा नयी मंजिल की ओर अग्रसर होता चला गया

उम्मीद की एक नयी किरण उदयमान करता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

गुब्बार धूल का उड़ाता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

 

झुकना

मंजिल मिलती है जब

आसमां झुक जाता है तब

शौहरत मिलती है जब

झुक जाती है दुनिया तब  

Friday, January 25, 2013

माँ

माँ शब्द है ऐसा

सारी दुनिया जैसे घर उसका

कायनात और खुदा भी

नतमस्तक इसके आगे

वर्णन की ना जा सके जो शब्दों में

माँ होती वैसी है

अंकुर नया फ़्रस्फ़ुटीत जब होता है

प्राणी जन्म जब लेता है

पहला शब्द माँ ही उच्चारण करता है

माँ जननी इस धरा की

कल्पना अधूरी सृष्टि की इस बिना

है इसके ही चरणों में जन्नत की छाया

इसमें ही दिखे ईश्वर का साया

माँ शब्द में ही ममता की माया

माँ शब्द में ही छुपी माँ नाम की गाथा 

ढोंगी

ढोंगी मानव हो गया

पाखंड की चादर ओढ़ सो गया

मुख में रखे खुदा का नाम

पर हाथों में सूरा के जाम

उतर मंदिर की जिन्ने

चूमे जिन्ने कोठे की हर शाम

भुला चंदन की खुशबू

भटके गजरे की गली गली

हटा तिलक छाप

सुरमे के रंग बदरंग हो गया

लगे उसे मंदिर मोक्ष का द्वार

पर कोठा लगे जन्नत का द्वार

पहन यह मुखोटा पाखंड का

ढोंगी मानव हो गया









 

Thursday, January 17, 2013

पिता की याद

नूर आपके आज फिर उदास है

आप नहीं जो पास है

आँखों में आँसू

दिलों में जज्बात है

आपकी प्रेरणा

हमारे लिये ईश्वर  वरदान है

आपके अंश कहलाने का गर्व

हमारे अभिमान का ताज है

यादों के झरोखों में ही

अब अपना साथ है

आप नहीं जो पास है

नूर आपके आज फिर उदास है