Tuesday, February 26, 2019

दर्पण अभिशाप

कल जब आईना देखा तब यह अहसास हुआ

वक़्त कितनी रफ़्तार से बदल गया

मन चिंतन तन वंचित विग्रह कर उठा

यादों के गलियारों में यह कैसा सन्नाटा पसर गया

कारवाँ जो साथ जुड़ा था कब का बिछड़ गया

पथरों के शहर में

बस एक मूकदर्शक बन रह गया

यूँ लगा मानों कितनी सदियाँ गुजर गयी

रंगत क़ायनात की फ़िज़ा संग अपने बदल गयी

सब था पास मगर सब्र ना था अब पास मगर

रौशनी से जैसे छन रही तम की माया नजर

एक अजनबी ख़ामोशी के मध्य

टूट रहे थे अब झूठे तिल्सिम के साये

रूबरू हक़ीक़त पहचान डर गया मन बाबरा

निहारु ना अब कभी दर्पण

लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना

लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना

Tuesday, February 12, 2019

मायूस मुस्कान

हर लम्हा लम्हा मुस्कराता रहा

ख़ुद में ख़ुद को तलाशता रहा

अनजाना था बेगाना था खुद से

मुस्कान में दर्द छिपता रहा

मिल जाए कोई पहचान शायद

इस दर्द को पढ़ ले कोई आकर

छू ले कोई अज़नबी यह अहसास

और जोड़ दे टूटे दिलों के तार

मिल जाए इसे किसी किनारे का साथ

कब तलक जिन्दा रह पाऊँगा

रूह बदलती अज़नबी साँसों के साथ

बह ना जाए खो ना जाए

भावनाओं के सैलाब में

इन मर्मस्पर्शी मुस्कानों के अहसास

उड़ ना जाए रँगत कहीं इसकी

रखना हैं इन ख्यालों को बरक़रार

बस इसलिए सजी रहे मायूस चेहरे पर भी

हर पल दिल को छू लेने वाली मुस्कान  

Sunday, January 27, 2019

दिल की बात

चिनारों की दरख़तों से फ़िज़ा लौट आयी

इबादत की मीनारों से रूह लौट आयी

सलवटें पड़ गयी रिश्तों की गलियारों में

भूल जो मेरे वजूद का क़िरदार

ढूँढती फिरी आसमां में महताब

लकीरें थी हाथों में मगर

क़िस्मत नहीं थी चाँद सितारों सी पास

नम थी दिल की जमीं पलकें थी भीगीं भीगीं

पर वो ना थी कही आस पास

छुपी थी जैसे बादलों के पार

ख्यालों की भीड़ में खो गयी अरमानों की दास्ताँ

आरज़ू उल्फ़त सनाट्टा बन छा गई दिल के आस पास

ना कोई ख्वाईशें ना कोई तरंगें छेड़ रही अब दिल के तार

बेज़ार हो उठी ख़ुद से ख़ुद के दिल की बात

उलझ रह गए बस रिश्तों के तार

सवालों के पहाड़ों में ढूँढता फिरा मैं अपना क़िरदार

टूटे दिलों में जगा ना पाया उन अहसासों के जज़्बात

बस टटोलता फिरा दिलों में दिल की बात, दिल की बात  

Monday, January 14, 2019

इच्छा शक्ति

प्रबल हो अगर इच्छा शक्ति

हिमालय की भी नहीं कोई हस्ती

धड़क रही हो ज्वाला जब दिलों में

आतुर उतनी तब होती जीतने की प्रवृति

दौड़ रहा हो लहू जब जूनून बन

द्वंद कैसे ना फिर मस्तिष्क में हो

आवेग इसका जो संग्राम मचाये

हृदय ललकार जोश ऐसा भर जाए

आगाज़ समर जीत से

एक नया अध्याय रचत जाए

कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति

वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि

रूह से मंज़िल फिर दूर नहीं

नामुमकिन सी फिर कोई सुबह नहीं

प्रबल इच्छा शक्ति के आगे

हिमालय का भी कोई मौल नहीं

कोई मौल नहीं 

Saturday, January 12, 2019

उम्र फ़साना

उम्र तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक फ़साना हैं

चेहरे की झुर्रियाँ ही सिर्फ़ वक़्त का अफ़साना हैं

फ़लसफ़ा लिखा जिसने इन साँसों पर

परवाज़ भरती वो गगन खाब्बों पर

आईना तो सिर्फ़ इसका एक बहाना हैं

उम्र की दहलीज़ मानो फ़रेब का खज़ाना हैं

रंगों की उल्फ़त इसका ताना बाना हैं

फ़ितरत कभी इसने बदली नहीं

धड़कनों से यारी इसकी कभी जमी नहीं

रूह तो सिर्फ़ इसका एक मुखौटा हैं

हर पड़ाव पर मगर एक नया संदेशा हैं

जी लो जी भर पल दो पल यहाँ

क्योंकि उम्र के बदलते आसमां में

कल का क्या भरोसा हैं कल का क्या भरोसा हैं