Thursday, December 26, 2019

सत्य की पहचान

ख़ोज रहा हूँ असत्य में सत्य की पहचान को

इस आबोहवा में लौ चिंगारी की आगाज़ को

कमसिन उम्र परिंदों सी छटपटाहट

हर लफ़्ज़ों से अँगार हैं बरसे

गहरे कोहरे घनघोर अँधेरे

तमाशबीन खड़े हैं समय घेरने

उन्माद हिंसक ज्वलंत प्रकरण

नए रूप में उभरा हैं रावण

होलिका दहन ताण्डव रूप धरे नवयौवन

रक्त होली बीच गुम हो गया बचपन

चल रहा असत्य हर घर हर गली गली

आराध्य बन पूज रही घृतराष्ट्र की टोली

करने इस कुरुक्षेत्र पटककथा का पटाक्षेप

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़  

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़     

Friday, December 13, 2019

ख्यालों की माला

गुँथ रहा हूँ ख्यालों की माला

कही अनकही अहसासों की गाथा

ऊपर गागर नीचे सागर

भँवर में अटकी सपनों की डागर

संसय भ्रमित ख़ोज रहा मन

मरुधर बीच अमृत नागर

आत्मसात करलूँ हर तारण

बैठू पूनम की रात मधुशाला जाकर

तृप्त हो जाऊ इस बैतरणी को पाकर

रस वो नहीं रुद्राक्ष तुलसी पिरोकर

बने श्रृंगार गजरे तेरे ख्याल पिरोकर

खोल पिटारा बैठा हूँ

निकल आये कही तरुवर में सागर

चहक उठे यादों की बगियाँ

भर आये नए सपनों के गागर

नए सपनों के गागर

Thursday, December 12, 2019

पत्ते

सिलसिला बातों का थम गया

दूर तुम क्या गए

दौर मुलाकातों का रुक गया

झरोखें के उस आट  से

चाँद के उस दीदार को

दिल ए सकून की तलाश में

खो गया तेरी गलियों की राहों में

तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

छलकते दर्द की परछाई को

छिपा अरमानों की बेकरारी को

जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को

हाथ छूटा मंजर टूटा

दूरियाँ चली आयी दोनों के पास 

मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए 

पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ 

Tuesday, November 5, 2019

आँखों का आलिंगन

अनकहे अल्फाजों का पैगाम हैं

जुल्फ़ों की लटों में गुजरे जो

हर वो शाम पाक ए जवां हैं

कुछ रूमानी सा अंदाज़ हैं

निखर आये रंग हिना भी

मौशीकी में डूबी शबनमी रात हैं

एक पल को ठहर जाये यह पल यहाँ

उड़ा ले जाये आँचल पवन वेग में

हिरणी सी मदमाती चाल हैं

छलके रोम रोम से प्यार खुदा बनके

संगेमरमर में तराशी ताज हैं

छोटा सा हसीन यह खाब्ब हैं

आँखों के आलिंगन में सजी रहे

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं 

Friday, October 11, 2019

गुफ्तगूँ

साँसों की गुफ्तगूँ में

गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी

खुले केशवों की लटों में

अरमानों की ताबीर खो गयी

देख चाँद के शबाब को

आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी

सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी

आँचल के आगोश में सिमटी

तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी

निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से

चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी

हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी