Wednesday, November 28, 2012

पड़ाव

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

बचपन खिले जिसमे फिर से

रंग बिखरे बचपन के जिसमे फिर से

उम्र की दहलीज का वो मुकाम अभी बाकी है

है यह आखरी पड़ाव उम्र का

फिर भी इसमें खो जाने की बेताबी है

वो सपनों की रंगीन दुनिया

हर गुस्ताखी जिसमे माफ़ी है

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

मुक्त हो बंधन की डोर जिसमे

गूंजे मसखरी के ठहाके जिसमे

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है




 

Monday, November 26, 2012

तांडव

बबंडर ऐसा उठेगा

कोहरा घना छा जाएगा

गुब्बार जो दफन होगा

ज्वालामुखी सा फुट जाएगा

गुमान भी ना होगा

वक़्त ऐसा भी आएगा

दिन में रात का अँधेरा घिर आएगा

खत्म हो जाएगा पल में सब कुछ

तांडव ऐसा आएगा

तांडव ऐसा आएगा







 

आस

हर दिन के साथ

गुजर गयी एक आस

कर रहे इन्तजार जिनका

अधूरी रह गयी वो आस

सिलसिला ये दर्दवाला

जीने की राह बन गयी

निगाहों को चैन कहा

जरे जरे में

उनकी तलाश शुरू कर दी

ओर समझा दी

धडकनों को भी ये बात

जब तलक पूरी नहीं हो जाती आस

निकलने न देंगे

इस तन से प्राण 

हक

ये खुदा मुझको तू अपना पता देना

मिलने एक रोज तुझसे आऊंगा

हर बार छला तूने

जबाब उसका लेने आऊंगा

रुला अगर तुझे दिया नहीं

प्राण अपने वही छोड़ आऊंगा

मोहरा बना दिया

अपनी शतरंज का

किस्मत को मेरी तूने

वो जबाब भी तुझसे चाहूँगा

जो तुम दे न सके जबाब

खुदा कहलाने का हक

तुझसे छीन मैं ले जाऊँगा 

Tuesday, November 20, 2012

हाथों की लकीर

ठन गयी एक दिन खुदा से मेरी

कहा उसने बन्दे

नहीं किस्मत की लकीर तेरे हाथों में

जज्बातों में वक़्त जाया ना करना

हुनर हो तो अपनी किस्मत लिख दिखलाना

कहा मैंने फिर खुदा से

बन्दा सच्चा हु तेरा

ये तुमको मैं दिखलादुँगा

बिन लकीर दिलों पे राज कर

हुनर अपना दिखलादुँगा

बना कटारी से हाथ पे रेखा

अपनी किस्मत खुद मैं बना लूँगा

पर मांगने तुझ से कुछ

चोखट तेरी ना आऊँगा

चोखट तेरी ना आऊँगा

हुनर तुमको मैं अपना दिखला जाऊँगा 

Monday, November 19, 2012

मशरूफ जिन्दगी

मशरूफ है जिन्दगी आजकल

ख्यालों में उलझी

ना जाने कहा खोई खोई रहती आजकल

पल पल जीती

पल पल मरती

हर पल एक नया इम्तिहान देती आजकल

खाब्ब ढेर सारे

फेहरिश्त अरमानों की लम्बी बुनती रात भर

हकीक़त की जमीं

नींद आने ना दे रात भर

जीना नहीं जीने के लिए

कहती फिरती आजकल

पंख मिल जाए अरमानो को

उलझी रहती इन्ही ख्यालों में आजकल

मशरूफ है जिन्दगी आजकल 

सपनो का सौदा

आ मैं सपनो का सौदा कर लू

सपने तुम्हे दे दू

नींद मैं ले लू

गुजरती नहीं है राते

सुनी रहती है आँखे

बाहों में तेरी सो जाऊ आके

ले लो तुम मेरे सपने उधार

बड़ी लम्बी होती है वो रात

झपकते नहीं नयना जिस रात

हो सपनो के रथ पे सवार

चुरा ले जाती निंदिया की आँख

करलो मेरा सौदा स्वीकार

लोटा दो मेरी निंदिया

ले लो मेरे सपने उधार

 

कदरदान

मूकदर्शक कदरदान नहीं

कला पारखी चाहिए

कटाक्ष हो या आलोचना

व्यक्त उसे करने वाला चाहिए

भावानाये जुडी हो जब

मंथन करने को

विचारों के सुझाभ चाहिए

अभिनय हो या लेखन

निखार ओर पैनी हो

मूकदर्शक कदरदान नहीं

आलोचक और समीक्षक चाहिए

समझे जो भावार्थ के अर्थ

कदरदान वैसा चाहिए 

Thursday, November 15, 2012

दौलत

दौलत है सपनों की रानी

गरीबों का पैसा

अमीरों का पानी

बदल दे किस्मत

लिख दे नयी जुबानी

मोह माया ऐसी

लहू जैसे लहू की प्यासी

कदर नहीं इंसान की

आदर पर इसका करे दुनिया सारी

बना दे पल में बिगड़े काज

या करवा दे जज्बातों को नीलाम

अमीरों के लिए वरदान

गरीबों का दाना पानी

दौलत है सपनों की रानी
 

Saturday, November 10, 2012

सपनों की रात

तुम कुछ कहती तो मैं कुछ सुनता

सारी रात यूही करवटें ना बदलता

नींद कहा आँखों में थी

सपने की रात गुजर जाने को थी 

खामोश मगर मग्न

ना जाने तुम क्या विचार रही थी

नई नवेली दुल्हन जैसे शरमा रही थी

बाहों को तेरे आगोश की आस थी

पर रात ढल जाने को बेताब थी

बेकरार निंद्रा भी थी

पर आँखों में कहा उसकी परछाई थी

करवटों में रात खोने को लाचार थी

सुबह की लालिमा उदय होने को त्यार थी

 

Thursday, November 8, 2012

जीवन संवेदना

स्वर शब्दों की अनूठी भाषा

मीठी वाणी अमृत का प्याला

छलके ऐसे गागर से सागर जैसे

इस सुन्दर माध्यम की

नहीं कोई परिभाषा

समाई जिसमे सृष्टि की अभिलाषा

सक्षम है अक्षरों की भाषा

प्रगट होती इनके हर भावों में चेतना

चाहे ख़ुशी हो या वेदना

हर अक्षरों में समाहित जीवन संवेदना 

बेमिशाल मोहब्बत

हुई मोहब्बत जो शराब से

हर जाम एक गजल बन गयी

हर शाम एक कविता बन गयी

आलम नशे का ऐसा चढ़ा

मधुशाला महबूबा बन गयी

सुरूर था सूरा का

लगी जो होटों से

संगिनी आखरी साँसों की हो गयी

बिन जाम कोई ना सहारा था

जीने का कोई ना बहाना था

यह वफ़ा की मिशाल थी

यारी इसकी बेमिशाल थी , बेमिशाल थी




धुंधली तस्वीर

धुंधली कैसे वो तस्वीर हो

स्नेह प्यार में बंधी जब डोर हो

अनमोल कैसे ना यादों के वो पल हो

मिले जिनमे अपनेपन के रंग हो

थामी जिसने धडकनों की डोर हो

भूल उनको जाने की खता फिर कैसे हो

भूल उनको जाने की खता फिर कैसे हो