Friday, October 21, 2016

हसरतें

आरजू जिसकी कभी की नहीं

हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी

दिल को ए पता ही ना चला

परिंदों सी परवाज़ भरती जिंदगानी

अटखेलियाँ करती साजों से

कब इंद्रधनुषी रंगों में रंग गयी

दिल को ए पता ही ना चला

वो चाँद कब गलहार बन

जिंदगी का हमसफ़र बन गया

दिल को ए पता ही ना चला

हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी

दिल को ए पता ही ना चला

2 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-10-2016) के चर्चा मंच "अर्जुन बिना धनुष तीर, राम नाम की शक्ति" {चर्चा अंक- 2504} पर भी होगी!
    अहोई अष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय शास्त्री जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज

      Delete