तस्वीर मेरी अधूरी थी
रंगों की तेरी उसमें कमी थी
दर्पण भी नजरें चुरा लेता था
आज़माता उसके सामने
खुद को जब में था
फिर भी
ढूंढता फिरा हर उस सुहाने पल को मैं
कभी तो
रंग लूँ तस्वीर अपनी तेरे रंगों से में
बस रह गया खोया इसी धुन मैं
ओर चुपके से चुरा कोई दीवाना ले गया
ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में
ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में
रंगों की तेरी उसमें कमी थी
दर्पण भी नजरें चुरा लेता था
आज़माता उसके सामने
खुद को जब में था
फिर भी
ढूंढता फिरा हर उस सुहाने पल को मैं
कभी तो
रंग लूँ तस्वीर अपनी तेरे रंगों से में
बस रह गया खोया इसी धुन मैं
ओर चुपके से चुरा कोई दीवाना ले गया
ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में
ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-10-2016) के चर्चा मंच "गंगा पुरखों की है थाती" (चर्चा अंक-2491) पर भी होगी!
ReplyDeleteदुर्गाष्टमी और श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'