Saturday, October 8, 2016

अधूरी तस्वीर

तस्वीर मेरी अधूरी थी

रंगों की तेरी उसमें कमी थी

दर्पण भी नजरें चुरा लेता था

आज़माता उसके सामने

खुद को जब में था

फिर भी

ढूंढता फिरा हर उस सुहाने पल को मैं

कभी तो

रंग लूँ तस्वीर अपनी तेरे रंगों से में

बस रह गया खोया इसी धुन मैं

ओर चुपके से चुरा कोई दीवाना ले गया

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

1 comment:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-10-2016) के चर्चा मंच "गंगा पुरखों की है थाती" (चर्चा अंक-2491) पर भी होगी!
    दुर्गाष्टमी और श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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