Tuesday, November 28, 2017

गुलाब

लाख जतन की हमनें इश्क़ छुपाने की

पर उनके दिए गुलाबों ने

खुश्बू चमन में ऐसी बिखरा दी

बात जो अब तलक जो दिलों की दरम्यां थी

अब वो हर महफ़िल में चर्चें ख़ास हो गयी

यारों क्या अब करे

जिन गुलाबों को बड़ी हिफाज़त से छुपा

नज़राना इश्क़ जो उन्होंने पेश किया

बिन कहे ही

रंगो ने उनके चमन को गुलज़ार कर दिया

गुलाब ने अपनी खुश्बुओं से

हमारी चाहत को भी एक नाम दे दिया

Sunday, November 26, 2017

अकेली नींद

सपनों के आगे नींद मुक़म्मल होती नहीँ

हकीक़त से परे

बारात ख़्वाबों की थमती नहीं

परवाज़ अरमानों की

छूने गगन कम होती नहीं

नींद दर्पण हैं ख्वाइशों का

गल ए गले मिलती नहीं

बिखर ना जाए कही अरमानों के रंग

ऊहापोह के इस द्वन्द से संधि होती नहीं

नींद अकेली भी अब क्या करे

झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं

झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं 

Wednesday, November 15, 2017

जंग

ख़ुदा से आज मेरी जंग छिड़ गयी

लेखनी मैंने भी तब हाथों में पकड़ ली

मुक़द्दर ने फ़िर उड़ान की राह पकड़ ली

कुँजी हर दिशा की मानों मुझे मिल गयी

मोक्ष कर्मों का फ़ल हैं

मंत्र से

मैंने अपने किस्मत की लक़ीर बदल दी

मगरूर खुदा का गरूर

अहंम से जो मेरे टकरा गया

अहंकार नहीं

बलबूते पर अपने

करने सपने साकार अपने

खुदा को आज मैं ललकार आया

सोयी क़िस्मत जगाने

खुदा से रण का ऐलान कर आया

खुदा से रण का ऐलान कर आया