सपनों के आगे नींद मुक़म्मल होती नहीँ
हकीक़त से परे
बारात ख़्वाबों की थमती नहीं
परवाज़ अरमानों की
छूने गगन कम होती नहीं
नींद दर्पण हैं ख्वाइशों का
गल ए गले मिलती नहीं
बिखर ना जाए कही अरमानों के रंग
ऊहापोह के इस द्वन्द से संधि होती नहीं
नींद अकेली भी अब क्या करे
झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं
झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं
हकीक़त से परे
बारात ख़्वाबों की थमती नहीं
परवाज़ अरमानों की
छूने गगन कम होती नहीं
नींद दर्पण हैं ख्वाइशों का
गल ए गले मिलती नहीं
बिखर ना जाए कही अरमानों के रंग
ऊहापोह के इस द्वन्द से संधि होती नहीं
नींद अकेली भी अब क्या करे
झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं
झूटे वजूद के बिना ए भी कटती नहीं
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