Wednesday, November 15, 2017

जंग

ख़ुदा से आज मेरी जंग छिड़ गयी

लेखनी मैंने भी तब हाथों में पकड़ ली

मुक़द्दर ने फ़िर उड़ान की राह पकड़ ली

कुँजी हर दिशा की मानों मुझे मिल गयी

मोक्ष कर्मों का फ़ल हैं

मंत्र से

मैंने अपने किस्मत की लक़ीर बदल दी

मगरूर खुदा का गरूर

अहंम से जो मेरे टकरा गया

अहंकार नहीं

बलबूते पर अपने

करने सपने साकार अपने

खुदा को आज मैं ललकार आया

सोयी क़िस्मत जगाने

खुदा से रण का ऐलान कर आया

खुदा से रण का ऐलान कर आया

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-11-2017) को "नागफनी के फूल" (चर्चा अंक 2791) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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