RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Friday, July 22, 2011
निंद्रामग्न
ठहराव है विखराव है
समुद्र की लहरे भी लाजबाब है
ना वो वेग है
ना वो तरंग है
धारा जैसे मौन है
खामोश समुद्र जैसे निंद्रामग्न है
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