Wednesday, April 10, 2013

पुत्री

मेरी जिन्दगी के किताब की

तुम वो कविता हो

बार बार पढ़ने को

दिल जिसे चाहता है

तेरे शब्दों की मिठास में

घुल जाने को जीवन चाहता है

प्रेरणा हो तुम इस जीवन की

रेखांकित की जिसने

पिता पुत्री के प्यार की भाषा

बन इस घर मंदिर की आशा

धन्य हो गया जीवन मेरा

पा तेरी जैसी गुणवती छाया 

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