सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी
गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी
जैसे कोई कंचन काया थी
परिणय सूत्र कि जैसे मंगल बेला आयी थी
गूँज रही कहीं पास ही जैसे शहनाई थी
कितना हसीन पाक था ये मंजर
कुदरत भी जैसे साक्षी बन आयी थी
बारिश कि शबनमी बूंदे
पिरों रही जैसे मोतियों कि माला थी
सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी
गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी
जैसे कोई कंचन काया थी
गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी
जैसे कोई कंचन काया थी
परिणय सूत्र कि जैसे मंगल बेला आयी थी
गूँज रही कहीं पास ही जैसे शहनाई थी
कितना हसीन पाक था ये मंजर
कुदरत भी जैसे साक्षी बन आयी थी
बारिश कि शबनमी बूंदे
पिरों रही जैसे मोतियों कि माला थी
सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी
गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी
जैसे कोई कंचन काया थी
कल 20/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
अच्छा लिखा है |
ReplyDeleteThanks
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