नींद न जाने कहाँ खो गयी
जिंदगी सपनों कि दुनिया से बेजार हो गयी
खाब्ब अब आधे अधूरे से रह गए
नज़ारे सारे
नयनों के सामने सिमट गए
रोग ए कैसा लगा
बोझिल पलकें भी
जैसे करवटों में बदल गयी
ओर सुहानी रात कि घड़ियाँ
तारें गिनते हुए गुजर गयी
तारें गिनते हुए गुजर गयी
जिंदगी सपनों कि दुनिया से बेजार हो गयी
खाब्ब अब आधे अधूरे से रह गए
नज़ारे सारे
नयनों के सामने सिमट गए
रोग ए कैसा लगा
बोझिल पलकें भी
जैसे करवटों में बदल गयी
ओर सुहानी रात कि घड़ियाँ
तारें गिनते हुए गुजर गयी
तारें गिनते हुए गुजर गयी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (03-02-2014) को "तत्काल चर्चा-आपके लिए" (चर्चा मंच-1512) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
महोदय हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने कि लिए धन्यवाद . आप कि हौसला अफजाई से मेरे कलम में ओर निखार आ जाये .
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