Thursday, April 3, 2014

दूरियों की आगाज

अस्तगामी सूर्य कि लालिमा

कर रही नीले अम्बर को प्रखर

परिंदो का अग्रसर झुण्ड

कर रहा दिव्यमान को मुखर

सांझ कि बेला

ओढ़ घटाओँ कि चुनरिया

कर रही चाँदनी को बेताब

सिमट आये चाँद आगोश में

ओर बुझ जाये दूरियों की आगाज

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