Tuesday, September 22, 2015

ख़ौफ़

मैं पानी पे नाम उसका लिखता रहा

वो रेत के महल बनाती रहीं

सपनों की इस डोर को

लहरों का ख़ौफ़ ना था

रिश्तों की इस माला को

बिखरते घरोंदों का रंज ना था

थी बस एक ही लगन

चाहे उजड़ते रहे आशियाँ

मिटते रहे नामोनिशां

मगर सपनें आँखों में

यूँ ही बस पलते रहे

ओर सपनें बस यूँ ही पलते रहे




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