कहानी मेरी भी औरों से जुदा ना थी
शतरंज की बिसात पे जैसे जिंदगी सजी थी
एक अदना सा मोहरा था मैं उस चाल का
लगाम जिसकी थी दिग्गजों के हाथ में
पर वर्चस्व के इस समर में
कुरुक्षेत्र की रणनीति अभी आनी थी
मगर चूक गयी गर्दन तलवार की धार से
ओर पलट दी बाजी मोहरे ने धीमी चाल से
मात खा गया बादशाह एक सिपहसालार से
छोड़ जीत के जश्न को मध्य मार्ग में
मोहरे ने फिर बैठा दिया बादशाह को तख्तों ताज पे
ओर राज हो गया मोहरे का सबके दिलों दिमाग पे
पर राजनीति के इस द्वन्द में
फिर भी मैं हार गया अपनों के हाथों जीत के
अपनों के हाथों जीत के
शतरंज की बिसात पे जैसे जिंदगी सजी थी
एक अदना सा मोहरा था मैं उस चाल का
लगाम जिसकी थी दिग्गजों के हाथ में
पर वर्चस्व के इस समर में
कुरुक्षेत्र की रणनीति अभी आनी थी
मगर चूक गयी गर्दन तलवार की धार से
ओर पलट दी बाजी मोहरे ने धीमी चाल से
मात खा गया बादशाह एक सिपहसालार से
छोड़ जीत के जश्न को मध्य मार्ग में
मोहरे ने फिर बैठा दिया बादशाह को तख्तों ताज पे
ओर राज हो गया मोहरे का सबके दिलों दिमाग पे
पर राजनीति के इस द्वन्द में
फिर भी मैं हार गया अपनों के हाथों जीत के
अपनों के हाथों जीत के
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-04-2016) को "कंगाल होता जनतंत्र" (चर्चा अंक-2302) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
Deleteआभार
मनोज