हवा न जाने कौन सी छू गयी
मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी
खिलते गुलाब सा मुखड़ा
जैसे सौगात में दे गयी
जालिम बदल फ़िर फिजाँ की बयार
रुख से नक़ाब उड़ा ले गयी
ओर जाते जाते , दिल के चमन में
जन्नत बसा गयी
ना आया जिसे कभी इश्क़ करना
उसे इश्क़ की वादियों में तन्हा छोड़ गयी
हवा न जाने कौन सी छू गयी
मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी
हवा न जाने कौन सी छू गयी
मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी
खिलते गुलाब सा मुखड़ा
जैसे सौगात में दे गयी
जालिम बदल फ़िर फिजाँ की बयार
रुख से नक़ाब उड़ा ले गयी
ओर जाते जाते , दिल के चमन में
जन्नत बसा गयी
ना आया जिसे कभी इश्क़ करना
उसे इश्क़ की वादियों में तन्हा छोड़ गयी
हवा न जाने कौन सी छू गयी
मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी
हवा न जाने कौन सी छू गयी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-03-2016) को "शिकवे-गिले मिटायें होली में" (चर्चा अंक - 2289) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
Deleteआभार
मनोज
बहुत खूब...
ReplyDeleteआभार
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