गुनाह मेरे ख्बाबों का कहा था
शरारत भी उनकी मासूमियत भरी थी
पेंच लड़े नयनों के थे
पतंग पर वो दिल की काट गए थे
लावण्य उनके रूप का ना था
फ़िज़ा में बहार उनके चिलमन की थी
गुलाब सी खिलती, इत्र सी महकती, हँसी उनकी
अनजाने में जुर्म ए करवा गयी
आजीवन उम्र कैद की बेड़ियाँ इन हाथों को पहना गयी
इन हाथों को पहना गयी
शरारत भी उनकी मासूमियत भरी थी
पेंच लड़े नयनों के थे
पतंग पर वो दिल की काट गए थे
लावण्य उनके रूप का ना था
फ़िज़ा में बहार उनके चिलमन की थी
गुलाब सी खिलती, इत्र सी महकती, हँसी उनकी
अनजाने में जुर्म ए करवा गयी
आजीवन उम्र कैद की बेड़ियाँ इन हाथों को पहना गयी
इन हाथों को पहना गयी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-04-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2618 (http://charchamanch.blogspot.com/2017/04/2618.html) में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग भाई
Deleteमेरी रचना लिंक करने के लिए धन्यवाद
सादर
मनोज
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteकविता जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
मनोज