Thursday, December 14, 2017

गुमनाम हसरतें

गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो

ऐ जिंदगी कुछ सब्र करो

फ़कीरी कहीं तमाशा ना बन जाए

चादर मैली समझ किस्मत ठुकरा ना जाए

गुजारिश इसलिए बस इतनी सी हैं

उन गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो

ऐ जिंदगी एक पल को तो ठहरो

कहीं बेपनाह अरमानों के गागर से

अश्कों के सागर छलक ना जाए

महफ़ूज हैं अब तलक जो दिलों के अंदर

रोशन कुछ पल उन्हें ओर रहने दो

ऐ जिंदगी जब तलक संभल ना जाऊ

उन गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो

उन गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-12-2017) को "सब कुछ अभी ही लिख देगा क्या" (चर्चा अंक-2819) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर रचना

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