Friday, March 20, 2020

बेबस नारी

सहम जाती हूँ परछाई से भी अपनी

नुमाईस लगा रखी हैं अंधकार ने इतनी

शुष्क लबों को डरा रही

आहट पद्चापों की अपनी

कितनी व्यतिथ यह जिंदगानी हैं

हर गली चौराहों नुक्कड़ पे

शाम ढले यही कहानी हैं

वहशी दरिंदों की नजरों ने पहनी

हैवानियत हवस की लाली हैं

चीरती कोई चीख वीरान सन्नाटे को

हृदयगति एक पल को ठहरा जाती हैं

कितनी बेबस बना दिया कुनबे ने

अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं 

अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं  

12 comments:

  1. बहुत सही बात है
    अच्छी रचना।
    नयी रचना पढ़े- सर्वोपरि?

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    1. आदरणीय रोहितास जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. आदरणीय अनीता जी
      मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

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  3. सुंदर और सार्थक पंक्तियाँ।

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    1. आदरणीय नितीश जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

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  4. Replies
    1. आदरणीय शास्त्री जी
      हौशला अफजाई और रचना पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज क्याल

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  5. अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
    बहुत सटीक सुन्दर समसामयिक सृजन।

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    1. आदरणीय सुधा जी
      दीदी तहे दिल से आपका शुक्रिया
      आभार
      मनोज क्याल

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद औंकार जी

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