Sunday, May 3, 2020

आवाज़

नफरतों के बाजार में मिला ना कोई कद्रदान l
खरीद सके जो इस तन्हा दिल के पैगाम ll

ख्वाईश हैं सौदागर मिले कोई ऐसा नायाब l
मेहताब बन निखर आये दिलों के अरमान ll

हालात ने पहरे लगाये हुए संवादों पर आय l
ताले पड़ जड़ गए जुबाँ के प्यालों पर आय ll

बिन कड़वाहट रिश्तों में दूरियाँ ऐसी बन आयी l
परछाई अपनी भी दस क़दम दूर खड़ी नज़र आयी ll

प्रतिलिपि फिर खोजी आफ़ताब के पास l
रहनुमा बन रूह उतर आये इसकी आवाज़ ll

महरूम ना हो कभी रिश्तें भी दूरियों के दरम्यां l
महफ़िल ओर मुखर आये बेक़रार धड़कनों के पास ll

ढलती साँझ नकाब के पीछे छुपी मुस्कान l
क़त्ल कर दिल का खरीद लिए सारे पैगाम ll

वो काफिर था या रहगुजर बेचैन थे नयनों के तार l
जल गयी चिंगारी बुझ गए जुल्मों सितम के तार ll

आँधियों के मेले में साये को मिल गया आकार l
हमसफ़र बन मिल गया दिल को जैसे कोई परवरदिगार ll

7 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय शास्त्री जी


      सर हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद



      आभार

      मनोज

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. आदरणीया कामिनी जी
      मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद
      आभार
      मनोज

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  3. Replies
    1. आदरणीया अनीता जी
      रचना पंसद करने के लिए धन्यवाद
      आभार
      मनोज

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  4. आदरणीया अनुराधा जी
    रचना पंसद करने के लिए धन्यवाद
    आभार
    मनोज

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