Tuesday, October 13, 2020

ll जिरह ll

जिरह होती रही तेरी मेरी साँसों में l
साजिश कोई रची यादों के खुले पन्नों ने ll
 
बेकाबू हिचकियाँ मंजर बेपर्दा आरज़ू बबंडर  l
साँसों की चिल्मन में तेरे ही रंगों का समंदर ll
 
काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
खट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में ll
 
नज़ाकत भरी रुमानियत थी इस हसीन पल में l
रंज था पास हो के भी वो पास ना थी इस पल में ll
 
रिहा थी ताबीर तस्वीर साजिश पदचापों की l
मेहराब थी हिचकियाँ खूबसूरत अहसासों की ll

बंदिशें थी साँसों की खुद से खुद अगर l
जुदा औरों से थी राहें अपनी ए रहगुज़र ll

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-10-2020) को   "रास्ता अपना सरल कैसे करूँ"   (चर्चा अंक 3854)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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    1. आदरणीय शिवम् जी
      शुक्रिया
      आभार

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  3. काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
    खट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में l
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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    1. आदरणीया अनीता दीदी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

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    1. आदरणीय सुशील जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  6. काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
    खट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में,,,,।।।बहुत सुंदर,,,,,,

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    1. आदरणीया मघुलिका दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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  7. सुन्दर गजल .... बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  8. आदरणीय सिन्हा जी
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद
    आभार

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  9. बहुत ख़ूब मनोज जी ! दिल को छू लेने वाले अशआर हैं ये ।

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  10. आदरणीय माथुर जी
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद
    आभार

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