Thursday, November 12, 2020

रंग

आयतें बन बरस रही लबों पे तू अल्फ़ाज़ों की तरह l
मिल गयी रुमानियत काफिर को रिवायतों की तरह ll

ज़िक्र तेरा रहा हर इबादत में रूह की तरह l
गूँज रहा कलमा तेरा नूर ए अज़ान की तरह ll

रूहानियत बन बरस रही तू सपनों की ताबीर की तरह l
छू गयी दिल ए कायनात को तू खुदा की तरह ll

रंग समेटे हैं तूने लाखों इंद्रधनुष की तरह l
समेट ले मुझको भी तेरी आगोश में समंदर की तरह ll

रंज हैं उस चाँद से छिपा हैं अब तलक गैरों की तरह l
प्रतिलिपि जिसकी बसी दिल में धड़कनों की तरह ll

प्रतिबिंब छाया तेरी नाच रही बाँसुरी सरगम की तरह l
छा रही ख़ुमारी तेरे इश्क़ की पतझड़ में सावन की तरह ll

उतर आ धरा बन मरुधर मृगतृष्णा की तरह l
मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह ll

मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह l
मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह ll   

10 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय शिवम् जी
      शुक्रिया
      आभार

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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    1. आदरणीय नितिश जी
      शुक्रिया
      आभार

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  3. बहुत सार्थक, उम्दा।
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      आपको भी धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ
      मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
      आभार

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    1. आदरणीया सधु दीदी जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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    1. आदरणीया ज्योती दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

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