Saturday, May 4, 2024

रूहानी साँझ

पैगाम जो आहिस्ते दस्तक दे रहे थे रूहानी साँझ को l

करार कही एक छू रहा था इसके सुर्ख लबों साथ को ll


संगीत स्वर फ़रियाद आतुर जिस तरंग ढ़ल जाने को l

वो मौन दिलकशी डूबी होठों तन्हा सागर बीच आकर ll


आरज़ूयें बेकरार थी जिस अधूरी ग़ज़ल साज की तरह l

दिलजलों को ख्वाब वो लिखती गयी मनचलों की तरह ll


दास्ताँ बयां ना होती इस अल्हड़ दर्द के मासूमियत की l

जुबाँ अधूरे किश्तों पैबंद सजी कहानी सुना ना रही होती ll


मासूम नादानी मौसीक़ी रंगा चाँद कहर ढा गया इस बाती पर l

इनायतों सिमटी बदरी में किसी दिलचस्प आयतों की तरह ll




6 comments:

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    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. Replies
    1. आदरणीय शिवम भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. Replies
    1. आदरणीय आलोक भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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