Wednesday, November 13, 2024

सम्मोहन

सम्मोहन तेरे दिल के तिल ने नजरों पर ऐसा फेरा l

दर्पण भी मेरा अकेले में खुद से शर्माने लगा ll



जादुई संचारी ने आहिस्ता आहिस्ता लिखी जो ग़ज़ल l

प्रतिबिंब उसकी बन गयी मेरे आरज़ू की धूप सहर ll



साक्षी किरणें ढलती सांध्य लालिमा घूंघट ढाल l

सुकून चुरा ले गयी पलकों अब्रों शमशीर नाल ll



नज़र उतारी नजरों की बना इसे ताबीज बाती साय l

मुक्तक खुल संवर गयी इन बंद पिंजर गलियारों माय ll



उलझी थी जो पाती बिन अक्षरों पहेली रंगीन धागों की l

महका गयी गुल बिन हीना ही इन कजरी हाथों की ll

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