Sunday, May 4, 2025

अर्थ

अलसाई सहर पैबंद सरीखी सी कायनात बीच l

कयामत खलल ख्वाबों ख्यालों अफ़सानों बीच ll


धूप अरदास धूनी कौतूहल सी लागत दर्पण नीर l

पुकार हृदय मांझी नृत्य साधना यौवन सागर क्षीर ll


सुस्त लम्हों दरमियाँ आलिंगन महताब मंजर धीर l

वृतांत पर्वतों सा विशाल पिघल चला लावा चीर ll


अस्मत आँचल ओढ़नी सहमी नयनों काजल तीर l

सौदागरी अदाकारा वाणी राहत तारों भरी भीड़ ll


तृप तरुण तर्पण साँझी सुगंध बेला मरुधर बीच l

परिहार परिहास कस्तूरी टटोल भटका मन अधीर ll


रूहानियत रूमानियत अंतर फासले साजों बीच l

अर्थ मौसिकी आधा खोया सा बैचैन करवटों बीच ll

3 comments:

  1. तृप तरुण तर्पण साँझी सुगंध बेला मरुधर बीच l
    परिहार परिहास कस्तूरी टटोल भटका मन अधीर ll
    सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      ह्रदय तल से आपका आभार

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  2. आदरणीया पम्मी दीदी जी
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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