Wednesday, November 5, 2025

खण्डित विपाशा

थक गयी आत्मा पत्थरों के संवेदना बिन शून्य शहर को l

अजनबी थी खुद की ही रूह जिस्म को जिस्म रूह को ll


गर्द घूंघट ढाक गयी नज़ारे आसमाँ नन्हें फरिश्ते सितारों को l

ओढ़नी बादलों की बातें भूल गयी पिघल बरस जाने को ll


विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l

वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll


अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l

अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll


हाथ छुटा साथ छुटा बचपन लूट गया इन अंध गलियारों को l

बिखर पारिजात शाखा से ढूंढता घोंसला बबूल काँटों को ll


बदरंग दर्पण अतीत ओझल अकेला खड़ा रेतो टीलों जंगल को l

खण्डित विपाशा अनकहे हौले से बदल गयी रूह कुदरत को ll

15 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन

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    1. आदरणीया भारती दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. सुंदर रचना।
    सादर।
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आदरणीया श्वेता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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    1. आदरणीय हरीश भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीया प्रियंका दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीय विश्वमोहन भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  7. बहुत सुंदर सृजन !

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    1. आदरणीया शुभा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  8. आदरणीया श्वेता दीदी जी
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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