Wednesday, November 5, 2025

खण्डित विपाशा

थक गयी आत्मा पत्थरों के संवेदना बिन शून्य शहर को l

अजनबी थी खुद की ही रूह जिस्म को जिस्म रूह को ll


गर्द घूंघट ढाक गयी नज़ारे आसमाँ नन्हें फरिश्ते सितारों को l

ओढ़नी बादलों की बातें भूल गयी पिघल बरस जाने को ll


विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l

वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll


अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l

अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll


हाथ छुटा साथ छुटा बचपन लूट गया इन अंध गलियारों को l

बिखर पारिजात शाखा से ढूंढता घोंसला बबूल काँटों को ll


बदरंग दर्पण अतीत ओझल अकेला खड़ा रेतो टीलों जंगल को l

खण्डित विपाशा अनकहे हौले से बदल गयी रूह कुदरत को ll

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