थक गयी आत्मा पत्थरों के संवेदना बिन शून्य शहर को l
अजनबी थी खुद की ही रूह जिस्म को जिस्म रूह को ll
गर्द घूंघट ढाक गयी नज़ारे आसमाँ नन्हें फरिश्ते सितारों को l
ओढ़नी बादलों की बातें भूल गयी पिघल बरस जाने को ll
विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l
वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll
अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l
अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll
हाथ छुटा साथ छुटा बचपन लूट गया इन अंध गलियारों को l
बिखर पारिजात शाखा से ढूंढता घोंसला बबूल काँटों को ll
बदरंग दर्पण अतीत ओझल अकेला खड़ा रेतो टीलों जंगल को l
खण्डित विपाशा अनकहे हौले से बदल गयी रूह कुदरत को ll
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसुंदर
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