Wednesday, October 1, 2014

रिश्तों से डर

रिश्तों से डर लगता है अब

किसी को अपना कहने से भय लगता है अब

रिश्तों को भूल अपने ही

पराये बन जाए सपनें जैसे जब

कैसे नाता उनसे जोड़े तब

कच्चे धागे की इस डोर को

जोड़े फिर कैसे हम

रिश्तों से डर लगता है अब

बार बार के तानों से ही

रिश्तों को जो यह नया आयाम मिला

मुकाम रिश्तों का फिर एक नया बना

रिश्तों का इसीलिए यह अंजाम हुआ

किसी को अपना कहने का अब दुःसाहस ना हुआ

और रिश्तों से भय लगने लगा है अब




हमराज

मैंने ख़ामोशी को हमराज बना लिया

लफ्जों को जुबाँ ना दू

इसलिये

बातें जो दिल में थी

उन्हें वही दफ़न कर दिया

जज्बातों की आँधी से

मर्माहत ना हो रिश्ते

मैंने इसलिए ख़ामोशी को

हमराज बना लिया

मंजर ख़ामोशी का

बड़ा ही भयावह है

पर अपनों की खातिर

छोड़ लफ्जों का साथ

मैंने ख़ामोशी को हमराज बना लिया

नयी कहानी

क्यों ना फिर एक नयी कहानी लिखें

इस प्यार को एक नया मुकाम दे

दर्पण तू मेरा बन जाए

साया मैं तेरा बन जाऊ

मोहब्बत के सुर

जैसे दिलों की अजान बन जाए

पढ़े जो कोई इस इबादत को

इसमें ही उसे

खुदा का नूर मिल जाय

प्यार के इस पैगाम से

रुकी साँसों में भी

एक बार धड़कनें लौट आये

आओ सफर की इस  मंजिल पे

थामे हाथोँ में हाथ

अपने प्यार को एक नया नाम दे

क्यों ना फिर एक नयी कहानी से

प्यार का इजहार करे

आगाज करे

Sunday, September 14, 2014

पढ़ूँ कैसे

पढ़ूँ कैसे उस दिल को

जिसकी  हर धड़कनों से

शबनमी आँसू लहू बन रहे है

रंजो गम की स्याही में लिपटी

जिस इबादत ने

रूप बदल डाले

अस्तित्व बदल डाले

उस खारे समंदर को

मीठी सरिता बनाऊ कैसे

रूठे रूठे बेकाबू जज्बातों को

रोशनी का दर्पण दिखलाऊ कैसे

ना कोई चाहत

ना कोई अरमान

टूटे बिखरे इन अरमानों से

प्रेम की माला पुनः गुंथु कैसे

पढ़ूँ फिर कैसे

नया काव्य लिखू फिर कैसे

आस जिसकी छूट गयी

डोर जिसकी टूट गयी

सपनों की उम्मीद जगाऊँ

उसमें फिर कैसे

जगाऊँ फिर कैसे
  


अनुभूति

अनुभूति तेरे प्यार की

आस एक जगा गयी

खलिस थी जो मन में

वो मिटा गयी

सपने के घरोंदे को

हक़ीक़त बना गयी

जो थी अब तलक

सिर्फ ख्यालों में

वो धड़कन बन

दिल में समा गयी

अनुभूति तेरे प्यार की

शमा जीने की जला गयी