Tuesday, September 12, 2017

शिकायत

शिकायतों का तुमने ऐसा पहाड़ बना दिया

ना ख़ुद हँस के जिये, ना हमें जीने दिया

अम्बर से ऊँचा ऐसा अंबार लगा दिया

जीना दुश्वार हो, दिवास्वप्न बन रह गया

कुंठाग्रस्त भावना से ग्रसित मर्ज ने

शिकायतों के बोझ तले हसीं को दफ़ना दिया

बेख़ुदी के आलम से हम भी बच ना पाये

हर लफ्जों में शिकायतों को शुमार देख

ख़ुद को अपना गुनहगार मान लिया

शिकायतों को भी शिकायतों से शिकायत ना रहे

इसलिए गुमशुदगी में नाम अपना दर्ज करा दिया

नाम अपना दर्ज करा दिया

Saturday, September 9, 2017

एक बार फ़िर

चल आज एक बार फ़िर बहकने चलते हैं

लड़खड़ाते कदमों को सँभालने चलते हैं

ना मंदिर ना मस्जिद, थाम खुदा का हाथ

मधुशाला के द्वार चलते हैं

रहमों कर्म से, बिरादरी से इसकी

रूबरू खुदा को भी कराते हैं

हर मर्ज की दवा इसके साये में

खुदा को भी यह दिखलाते हैं

कैफियत के इसके रंगों से

चल एक बार खुदा बन जाते हैं

लड़खड़ाते कदमों को सँभालने चलते हैं

चल आज एक बार फ़िर बहकने चलते हैं

चल आज एक बार फ़िर बहकने चलते हैं



Friday, September 8, 2017

कर्मों के फल

अंतर्नाद का नाद हैं ये

ख़ुद से संघर्ष का रणभेदी आगाज़ हैं ये

पल प्रतिपल बदलते विचारों में

सामंजस्य पिरोने का सरोकार हैं ये

महा समर के चक्रव्ह्यु का

यह तो एक अध्याय हैं बस

संयम साधना ब्रह्मास्त्र ही

एकमात्र इस पहेली का राज हैं बस  

तपोबल ज्ञान से इसके

लक्ष्य दूर नहीं होगा तब

दृष्टि भ्रम से जब विचलित ना हो पायेगा मन

इसके एकांकित ध्यान केंद्र में ही 

समुचित हैं सब आस्था के फल

सब आस्था के फल

नींद

रात गुजरती नहीं सुबह चली आती हैं

नींद एक अदद फिर मुकम्मल हो पाती नहीं

विपासना साधना में तल्लीन मन

स्वांग आडंबर का रचाती हैं

ना जाने कैसे सपनों की धरोहर हैं ये

अमूल्य नींद के पलों को बेआबरू कर जाती हैं

बचपन में अर्जित नींद की अस्मत को

क्योँ फटेहाल किस्मत तार तार कर जाती हैं

सपनों की सौदागिरी में

शायद नींद भी कहीं बिक जाती हैं

परवान चढ़ते इस समझौते से

बिन थपकी ही रात पहर गुजर जाती हैं

और बिन नींद मुकम्मल हुए

सुबह चली आती हैं

सुबह चली आती हैं

Saturday, September 2, 2017

उम्र की चाबी

उम्र तो जिंदगी की दहलीज़ का बस एक पैमाना हैं

जिन्दा रहने को साँसें भी एक बहाना हैं

संघर्ष ही इसके अंदाज का आशियाना हैं

लुफ्त तभी हैं इसे जीने का

कारवाँ बेशक गुज़र जाये उम्र का

पर बचपन आगे और बुढ़ापा पीछे चलने की क़वायद सारी हैं

राहगुजर के इस पड़ाव में

उम्र का यह अपना ही हसीन फ़साना हैं

वैराग्य के इस राग में छिपे

जिंदगी के राज

बड़े मतवाले आशिक़ हैं

गुज़र गयी जो

वो तो बस एक कहानी हैं

उम्र तो बस साँसों की गुजारिश हैं

ग़ौर ना फरमाइये उम्र के पहलू पर

जब तलक दिल से जीने की ललक बाकी हैं

उम्र के तिल्सिम पिटारे की

बस यही एक चाबी हैं