Monday, November 25, 2013

राह

ए अजनबी न जाने क्यों

ए निगाहें हर पल तुम्हें तलाशती है

क्या रूप है जिसको ए निहारती है

वजूद इसका ना जाने कैसे पनपा

नाजुक से इस दिल के कोने में

मुलाकात अब अक्सर होती है

बंद पलकों के झरोकों में

सपनों के इस अनछुए संसार की

जाने कैसी कशिश का

कौन सा पैगाम है ए

अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें

करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी

तलाशती दिल कि राहें है

तलाशती दिल कि राहें है 

Tuesday, November 19, 2013

सिसकती जिंदगी

देखो मरघट बन गया संसार

सिसकती जिंदगी पड़ी राहों में

पर करहाहट किसीको सुनाई देती नहीं

मानो अंधो बहरों का शहर हो जैसे कोई

पर रफ़्तार जिंदगी कि कम होती नहीं

लगाम जिंदगी कि जैसे निकल गयी हाथ से

फुर्सत नहीं सहारा दे दे

बेदम हो रही जो जिंदगी आँखों के सामने

जनाजा निकल गया जिंदगानी का

जब बिन कफ़न ही दफ़न हो गयी जिंदगी 

इन अंधे बहरों के संसार में

इन अंधे बहरों के संसार में


सपने

छोटे छोटे सपनो कि बड़ी बड़ी दास्ताँ है

हालातों के दरमियाँ

बुनते बिखरते सपनो कि दास्ताँ है

बड़ा ही मजबूर लाचार विवश

दर्द से भरा संसार है 

टूट जाते है सपने

हक़ीक़त कि परछाई नजर जब आती है

कदर नहीं इंसान कि इस संसार को

दिल तोड़ने में ही इसे आनंद आता है

फिर भी

इंसान को सपने बुनने में ही आनंद आता है



Monday, October 21, 2013

आंसुओ की सौगात

आंसुओ से पुरानी पहचान है

जन्म के समय कुदरत से मिली सौगात है

खारी होती आंसुओ की धार है

मगर अनमोल होती इनकी पुकार है

ख़ुशी हो या गम

छलकाती  जब ये अपना पैमाना है

रो पड़ता दिल बेचारा है 

इनको नहीं समय का कोई ठोर ठिकाना है

वक़्त बेवक्त चल दे देती है

छोड़ पलकों का सहारा  है

 

महत्वाकांक्षाये

क्यों कैलाश चढूं

क्यों गंगा स्नान करूँ

विसर्जित करदी महत्वाकांक्षाये जब सारी

बलिदानी नहीं मैं कोई

आहुति दे दी तब भी अरमानों की अपनी

संवर जाए शायद जिन्दगी मेरी

मिल जाए मोक्ष यहीं कहीं पर

क्यों भटकू यहाँ वहाँ

ईश्वर जब स्वयं विराज रहे

मेरे ह्रदय बीच आकर

आत्म चिंतन करू मंथन करू

क्यों वैराग्य मैं अपनाऊ

बस नश्वर तन भोगू

मानव कर्म अपने करते जाऊ