Monday, June 9, 2014

शब्दों की माला

गूँथ रहा हु शब्दों की माला

हर शब्द महके जैसे गुलाब की माला

निकले जब मुख मंडल से

बेसुरी राग भी बन जाए

कोकिल कंठनि सी मधुर भाषा

गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला

स्पर्श कर दे मन मस्तिष्क

और द्रवित हो पिघल जाए

बैमनस्य की भावना

गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला

खिल उठे हर गुल

ढह जाए अहंकार की भावना

समाहित हो जिसमें

अपनेपन की भावना

गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला


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